दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

एपिसोड 579. देवीभाग़वत,4/2-4 जीवके सर्वाधिक प्रबल शत्रु हैं लोभ और ईर्ष्या।


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जीवके सर्वाधिक प्रबल शत्रु हैं लोभ और ईर्ष्या ।
लोभ और ईर्ष्या से बचना देवताओं के लिये भी कठिन है।
लोभ पाप को मूल है, लोभ मिटावत मान।
लोभ कभी नहिं कीजिए, या मैं नरक निदान।।
(भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, अंधेर नगरी नाटक)
*वसुदेव और देवकी के कष्ट का कारण था उनके पूर्वजन्म का लोभ और ईर्ष्या।
देवीभागवत के अनुसार, वसुदेव पूर्वजन्म में कश्यप ऋषि थे और देवकी कश्यपकी पत्नी अदिति थी। कश्यप ने लोभवश वरुण की धेनु का हरण किया, अतः वरुणने शाप दिया कि तुम मनुष्ययोनि में जन्म लेकर गोपालक हो जाओ। मेरी गाय के बछडे़ माता के विना दुःखी हैं अतः तुम्हारी पत्नी अदिति मृतवत्सा होगी और तुम दोनों को कारागार में रहना पडे़गा।
व्यासजी कहते हैं कि महर्षि कश्यप भी लोभ का परित्याग करने में समर्थ नहीं हुये तो सामान्य मनुष्यों का क्या कहना।
अहो लोभस्य महिमा महतोऽपि न मुञ्चति।
लोभं नरकदं नूनं पापाकरमसम्मतम्।।
धन्यास्ते मुनयः शान्ता जितो यैर्लोभ एव च।
वैखानसैः शमपरैः प्रतिग्रह पराङ्मुखैः।।
*अदिति ने ईर्ष्यावश अपनी सपत्नी दिति के गर्भ का नाश अपने पुत्र इन्द्रसे करवाया था अतः दिति ने उसे शाप दिया था कि इन्द्र का राज्य शीघ्र नष्ट हो जायेगा और तुम्हे मानवयोनि में जन्म लेना होगा तथा तुम्हारी सन्तानें जन्म लेते ही मर जाया करेंगी।
* पाण्डवों के द्वारा किये गये अन्याय के सम्बन्ध में जनमेजय का प्रश्न और व्यास जी का उत्तर।
* पाण्ड़ओं के यज्ञमें द्रव्यशुद्धि नहीं थी इसीलिये उन्हे यज्ञके उपरान्त वनवास भोगना पडा़।
*सर्वप्रथम द्रव्यशुद्धि का विचार करना चाहिये। जब यज्ञानुष्ठान कराने वाले ऋत्विक् आचार्य आदि लोगों का चित्त शुद्ध रहता है और देश काल क्रिया द्रव्य कर्ता और मन्त्र - इन सस की शुद्धता रहती है तभी यज्ञानुष्ठानों का पूरा फल मिलता है।
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati