*"......भु़नेशीत्येव वक्त्रे ददाति भुवनत्रयम्।। मांं पाहीत्यस्य वचसो देयाभावादृणान्विता। विद्याविद्येति तस्या द्वे रूपे जानीहि पार्थिव।। विद्यया मुच्यते जन्तुर्बध्यतेऽविद्यया पुनः।ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्च सर्वे तस्या वशानुगाः।।" *ब्रह्मा विष्णु महेश सभी नाशवान् हैं और सभी भगवती के अधीन हैं। वह सभीको मोह में डाले हुयी हैं और वही मुक्त भी करती हैं। उन भगवती के विद्या तथा अविद्या - यह दो रूप हैं। अविद्या से प्राणी बन्धन में पड़ता है और विद्या से मुक्त होता है। *पापभार से व्यथित पृथिवी को लेकर देवगण ब्रह्मा के पास और ब्रह्माजी सबको लेकर भगवान् विष्णु के पास गये।भगवान् विष्णु ने कहा मैं भी स्वाधीन नहीं, अपितु भगवती भुवनेश्वरी की आज्ञाके अधीन होकर अवतार ग्रहण करता हूँ। अतः चलिये हम सब लोग उन्ही की आराधना करें।