*दक्ष प्रजापति इत्यादि देवताओं की तपस्या से भगवती का प्राकट्य, दक्ष को वरदान और पुत्रीरूप से उनके घर में जन्म तथा शंकरजी को समर्पण।
* सतीके आत्मदाह के उपरान्त शंकरजी के द्वारा 108 शक्तिपीठों की स्थापना एवं नामकरण । वर्तमान समय में इन शक्तिपीठों में अधिकतर की भौतिक पहचान कठिन है। किन्तु, कुछ पीठ स्पष्ट हैं यथा, काशी में विशालाक्षी, प्रयाग में ललिता, विन्ध्याचल में विन्ध्यवासिनी। देवीभाग़वत से सिद्ध होता है कि विन्ध्याचल में शक्तिपीठ पहले से है और कृष्णावतार में यशोदाके गर्भ से उत्पन्न योगमाया कंस के हाथ से छूटकर उसी शक्तिपीठ में जाकर विराजमान हो गयीं।
*108 शक्तिपीठों के दर्शन का महत्व, इन 108 नामों के स्मरणका, जप का तथा इनको लिखकर अथवा पुस्तक में पास रखने का फल।