दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

एपिसोड 588, देवीगीता 5- नवचक्रभेदन और कुण्डलिनी जागरणकी विधि


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*इडा़, पिंगला, सुषुम्णा और विचित्रा नाडि़यों की स्थिति और कार्य।
*शरीर के चक्र और कुण्डलिनी की गति। *ध्यानकी विधि।
*योग के विना मन्त्र सिद्ध नहीं होता और मन्त्र के विना योग सिद्ध नहीं होता -"मन्त्राभ्यासेन योगेन ज्ञेय ज्ञानाय कल्पते। न योगेन विना मन्त्रो न मन्त्रेण विना हि सः।।" योग और मन्त्र दोनों मिलकर ज्ञानकी प्राप्ति कराते हैं।
*यह योग गुरु के उपदेश से ही समझ में आता है, अन्य किसी उपाय से नहीं। विना गुरु के इसे करोडो़ं शास्त्रों के अध्ययन से भी नहीं जाना जा सकता - "इति योगविधिः कृत्स्नः साङ्गः प्रोक्तो मयाऽधुना। गुरूपदेशतो ज्ञेयो नान्यथा शास्त्र कोटिभिः।।"
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati