एपिसोड 591 देवीगीता (भाग 9) देवीभक्ति में मुख्य व्रत -
* देवीभागवत में भगवती भुवनेश्वरी के स्वयं के वचनानुसार, चैत्र और आश्विन के नवरात्र तथा शुक्रवार, कृष्णचतुर्दशी, भौमवार और प्रदोष देवीभक्तो को व्रत के लिये प्रमुख दिन हैं। सोमवार को भी दिन में देवी के निमित्त व्रत रखकर रात में भोजन करने का विधान है।
*शुक्रवार विशेष - प्रतिदिन पूजा करने में असमर्थ लोगों के लिये शुक्रवारका दिन निर्धारित है -(प्रतिवारमशक्तानां शुक्रवारो नियम्यते)।
*प्रदोष के दिन सायंकाल महादेव स्वयं भगवती को कुशासनपर विराजमान कराकर उनके समक्ष सभी देवताओं के साथ नृत्य करते हैं। दोनों पक्षोंमें उस दिन उपवास करके सायंकाल के प्रदोष में भगवती की पूजा करनी चाहिये।
* भगवती की पूजा में धन की कृपणता नहीं करनी चाहिये। यह बात देवी भागवत में अनेक बार और स्वयं भगवती द्वारा बार बार कही गयी है।
*केवल कर्मकाण्ड से भगवती की प्राप्ति संभव नहीं है। भगवती कर्मयुक्त ध्यान अथवा भक्तिपूर्ण ज्ञान से मिलती हैं।
*धर्म, भक्ति और धर्माभास में अन्तर - धर्मसे भक्ति उत्पन्न होती है और भक्ति से परब्रह्म का ज्ञान प्राप्त होता है। श्रुति और स्मृति द्वारा जो प्रतिपादित है, वही धर्म है। अन्य शास्त्रों द्वारा जो निरूपित किया गया है, वह धर्माभास है।
* जब तक अन्तःपूजा में अधिकार न हो जाय, तब तक बाह्यपूजा करनी चाहिये।
*देवी की पूजा हृल्लेखा मन्त्र(देवी प्रणव) से सम्पन्न करनी चाहिये। देवीप्रणव सभी मन्त्रों की परम नायिका है।
* शिवमहापुराण की उमा संहिता के अनुसार प्रत्येक मास के शुक्लपक्ष की तृतीया देवी की उपासना के लिये विशिष्ट है।