दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

एपिसोड 593. गीतामुक्तावली 2/25-27


Listen Later

अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयमविकार्योऽमुच्यते।
तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि।।25।।
अथ चैनं नित्यजातं नित्यं वा मन्यसे मृतम्।
तथापि त्वं महाबाहो नानुशोचितुमर्हसि।।26।।
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च।
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि।।27।।
(
अनुवाद और व्याख्या आडियो में सुनें।) -----
# विशेष विचारविन्दु :-
* सभी अभिव्यक्तियां तो आत्मा की ही हैं, तब आत्मा अव्यक्त कैसे?
*आत्मा को अचिन्य क्यों कहे?
*आत्मा अचिन्त्य है तो आत्मचिन्तन शब्द का क्या अर्थ ?
*आत्मा (परमात्मा) और ईश्वर में क्या अन्तर है?
*ईश्वर चिन्त्य है अथवा अचिन्त्य ?
*माया चिन्त्य है अथवा अचिन्त्य?
*आत्मा अचिन्त्य है तो इसका ज्ञान कैसे हो सकता है? क्या अचिन्त्य का भी ज्ञान होता है?
*आत्माका ज्ञान किसे होता है - अन्तःकरण (मन बुद्धि चित्त अहंकार ) को ? अथवा स्वयं आत्मा को ?
* 25वें श्लोक तक बताये कि आत्मा न जन्म लेता है न मरता है। अब 26वें 27वें श्लोक में बता रहे हैं कि यदि यह बात समझ में नहीं आयी और यदि तुम आत्माको जन्मने मरने वाला ही समझते हो तो भी शोक नहीं करना चाहिये क्योंकि जन्म लेने वाले की मृत्यु और मरने वाले का जन्म अवश्य होगा । इसमें तुम्हारा कोई नियंत्रण नहीं। अतः जिस चीज पर वश नहीं उसके सम्बन्ध में शोक करने से क्या लाभ?
...more
View all episodesView all episodes
Download on the App Store

दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati