दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

एपिसोड 595. गीतामुक्तावली 2/30


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देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत।
तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि।।30।।
मुख्य विचारविन्दु ः-
*"देह" से क्या तात्पर्य है तथा श्लोक 30 में देह शब्द की विस्तार सीमा क्या है- [Meaning, Nature and Scope of the word "Deha" (Body)].
* क्या श्लोक 30 में देही शब्द जीवात्मा और शुद्धात्मा दोनों के लिये प्रयुक्त है? जीवात्मा और शुद्धात्मा में क्या अन्तर है?
व्याख्या सुनने के लिये आडियो प्ले करें।
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati