दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

एपिसोड 596.भगवद्गीता 2/31 भाग (1) क्षत्रियका सर्वोत्तम धर्म।


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स्वधर्ममपि चावेक्ष्य न विकम्पितुमर्हसि।
धर्म्याद्धि युद्धाच्छ्रेयोऽन्यच्छत्रियस्य न विद्यते।।31।।
आत्माकी दृष्टि से शोक करना उचित नहीं , क्योंकि वह अज , अविकारी और अमर है। जीवात्माकी दृष्टि से भी शोक करना उचित नहीं क्योंकि यह भी मोक्षकाल तक अविनाशी है । शरीर की दृष्टि से भी शोक करना उचित नहीं , क्योंकि जीवात्मा द्वारा शरीर का बदलना अर्थात् शरीरका जन्म और मरण निश्चित है।
अब 31वें श्लोक से बता रहे हैं कि स्वधर्म की दृष्टि से भी तुम्हे शोक नहीं करना चाहिये, क्योंकि क्षत्रिय के लिये धर्मयुद्ध ही सर्वश्रेष्ठ कर्तव्य है।
मुख्य विचारविन्दु ः-
*स्वधर्म क्या है?
* क्षत्रियधर्म क्या है? शास्त्रप्रमाण - मनु, 7/2,3,35,44,87,88,89,144 तथा 8/15,348,349,350,351,420.
*क्षत्रियधर्म का सामाजिक , धार्मिक और पारमार्थिक उद्देश्य क्या है?
*क्या पितामह भीष्म, गुरु द्रोण और सगे सम्बन्धियों का वध दोषपूर्ण नहीं ?
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati