दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

एपिसोड 599 गीतामुक्तावली,2/38-40 - कर्मयोगकी भूमिका


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सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि।।38।।
यहां तक सांख्यदृष्टि से समझाये अब अगले श्लोक से कर्मयोग और समाधि की दृष्टि से समझाते हैं -
एषा तेऽभिहिता सांख्ये बुद्धिर्योगे त्विमां श्रृणु।
बुद्ध्या युक्तो यया पार्थ कर्मबन्धं प्रहास्यसि।।39।।
नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते।
स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्।।40।।
मुख्य विचारविन्दु ः-
*समत्वबुद्धि क्या है?
*समदृष्टि और ब्रह्मदृष्टि में क्या अन्तर है?
*सकाम कर्म बन्धनकारक है। निष्काम कर्म से बन्धन नहीं होता।
*सकाम कर्म कीचड़ है। निष्काम कर्म निर्मल जल है। कीचड़ से कीचड़ की सफाई नहीं हो सकती। चित्तके कीचड़ की सफाई निष्काम कर्म रूपी निर्मल जल से ही होती है।
*चित्त की शुद्धि होने पर ज्ञान होता है और ज्ञान से मोक्ष होता है।
*निष्काम कर्म नष्ट नहीं होता और विपरीत फल नहीं देता। *निष्काम कर्म में क्रियाविधि सम्बन्धी त्रुटि क्षम्य है किन्तु सकाम में नहीं।
व्याख्या आडियो में सुनें।
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati