दूरेण ह्यवरं कर्म बुद्धियोगाद्धनञ्जय।
बुद्धौ शरणमन्विच्छ कृपणाः फलहेतवः।।2/49।।
बुद्धियुक्तो जहातीत उभे सुकृतदुष्कृते।
तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम्।।2/50।।
(सपठित 5/8-12) *बुद्धियोग अर्थात् ज्ञानयोग की विशेषता क्या है?
*निष्काम कर्म की अपेक्षा सकाम कर्म निकृष्ट क्यों है?
*कृपण किसको कहे ?
*ज्ञानयोग निष्काम कर्म से भी श्रेष्ठ क्यों है?
*योगः कर्मसु कौशलम् का क्या अर्थ है?
*** ध्यान दें - अत्यन्त असंतोष की बात है कि "कर्मयोग", "कर्मण्येवाधिकारस्ते ....." , और "योगः कर्मसु कौशलम्" - इन तीन बातों को समाज में सबसे अधिक कुव्याख्यायित (missunderstood or missinterprete) किया जाता है। इनका ठीक अर्थ समझना अति आवश्यक है।