दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

एपिसोड 612 मानसमुक्ता, बाल, दोहा 117 - 118


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एहि बिधि जग हरि आश्रित रहई।
जदपि असत्य देत दुःख अहई।।
जौं सपने सिर काटै कोई।
बिनु जागें भय दूरि न होई।।
जासु कृपाँ अस भ्रम मिटि जाई।
गिरिजा सोइ कृपाल रघुराई।।
बिनु पद चलै सुनै बिनु काना।
कर बिनु करम करै बिधि नाना।।
व्याख्या सुनने के लिये आडियो प्ले करें।
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati