दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

एपिसोड 615, गीतामुक्तावली,2/55-56


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प्रजहाति यदा कामान्सर्वान्पार्थ मनोगतान्।
आत्मन्येवात्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञस्तथोच्यते।।2/55।।
दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृहः।
वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते।।2/56।।
*कामना और वासना में क्या अन्तर है?
*कामना केवल ज्ञान से दूर नहीं होती, ब्रह्माभ्यास से दूर होती है।
*कामना का उदय होना न तो व्यक्ति का स्वभाव है न वस्तु का। इसकी उत्पत्ति भोगजन्य संस्कारों से होती है।
*संतोष मन का धर्म है अथवा आत्मा का? यदि मन का धर्म है तब तो चित्तवृत्ति समाप्त नहीं हुयी?
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati