*जो स्वयंको ज्ञानी मानकर इन्द्रियनिग्रह, आत्मचिन्तन ध्यान इत्यादि अभ्यास छोड़ देते हैं, उनका पतन हो जाता है।
*जितेन्द्रिय के ही चित्त को शान्ति मिलती है। चित्त की शान्ति से सभी दुःखों का नाश हो जाता है। शान्तचित्त वाले की ही बुद्धि आत्मा में स्थिर होती है। उसीको ब्रह्मसाक्षात्कार होता है।
*जीवन्मुक्त ही विदेहमुक्त होता है। जो जीवनकाल में मुक्त नहीं हुआ, वह मरणोपरान्त भी मुक्त नहीं होगा।