एपिसोड 647. श्रीरामचरित मानस, नारदमोह (उपसंहार)
नारद को दो दोषों के कारण यह लीला हुयी - प्रथमतः, उनका अहंकार और दूसरा, शंकरजी की अवहेलना। भगवान् विष्णु अपने प्रति किये गये अपराध को क्षमा कर देते हैं, किन्तु अपने भक्त के प्रति किये गये अपराध का दण्ड अवश्य देते हैं। उस पर भी शङ्करजी के प्रति अपराध और अधिक गम्भीर है।
"जेहि पर कृपा न करहिं पुरारी।
सो न पाव मुनि भगति हमारी।।
अस उर धरि महि बिचरहु जाई।
अब न तुमहिं माया नियराई।।"
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हरि अनन्त हरिकथा अनन्ता।
कहहिं सुनहिं बहु बिधि सब संता।।
रामावतार प्रत्येक कल्प में होता है। कालिका पुराण में भी कहा है - सहस्रों राम हो चुके और सहस्रों रावण हो चुके - "प्रतिकल्पं भवेद्रामो रावणश्चापि राक्षसः।
एवं राम सहस्राणि रावणानां सहस्रशः।
भवितव्यानि भूतानि तथा देवी प्रवर्तते।।"