एपिसोड 695. श्रीमद्भगवद्गीता, करपात्र विशेषांक 2.
*जो स्वकर्म को छोड़कर केवल भगवन्नाम का जप करता है वह भगवान् का ही द्रोही है।*
*अपहाय निजं कर्म कृष्ण कृष्णेति वादिनः।
ते हरेर्द्वेषिणः पापाः धर्मार्थं जन्म च हरेः।।*
*जब भगवान् स्वयं भी धर्मकी रक्षा के लिये अवतार ग्रहण करते हैं तब मनुष्यको तो धर्मरक्षा के लिये कर्म अवश्यही करना चाहिये!*
*संन्यासी का भी कर्तव्य है कि देश धर्म तथा संस्कृति की रक्षा के लिये उचित प्रयत्न करे।*
*अर्जुन ने जो प्रश्न किया था कि कुल के वीरों के न रहने पर विधवा स्त्रियों का शील दूषित हो जायेगा वे वर्णसंकर सन्तानें उत्पन्न करेंगी , उसका उत्तर यही है कि कायरों की तो सधवायें भी सदाचारिणी नहीं रह सकेंगी। अतः वर्तमानमें जो कर्तव्य सम्मुख है उसका पालन करो।