*जो यह समझते हैं कि वेदान्त कर्मकी उपेक्षा करता है अतः भौतिक उन्नति में बाधक है, वे वस्तुतः वेदान्त समझते ही नहीं अथवा प्रमादी हैं। वेदान्तकी ओट में प्रमाद ठीक नहीं।*
*जितने प्रकार के ज्ञान हैं, सबका यही उद्देश्य है कि दुःख मिटे और सुख प्राप्त हो*।
*किसको किस वस्तु से सुख मिलता है, उस सुख में कितना स्थायित्व है और उस सुख से अन्य प्राणियों को कितना सुख और दुःख मिलता है - इसका विचार ही धर्मशास्त्र का विषय है।