।।तस्य वाचकः प्रणवः।। तज्जपस्तदर्थभावनम्।।
* प्रणव के अर्थ को जान लेना ही शिवको जानना है।
*प्रणव ही ब्रह्मा से लेकर तृणपर्यंत समस्त प्राणियों का प्राण है, इसीलिये इसको प्रणव कहते हैं।
* प्रणव शिव का निवास भी है और प्रणव ही स्वयं शिव भी है।
* शंकरजी काशी में देह छोड़ने वाले जीव को इसी प्रणव का उपदेश देकर मुक्ति प्रदान करते हैं।