एपिसोड 701. श्रावणपूर्णिमा विशेषांक - पंचार जगच्चक्र और सदाशिव से महेश्वरादि व्यूहचतुष्ट्य की उत्पत्ति। शिवमहापुराण के अनुसार,
1. सदाशिव समष्टिरूप हैं। महेश्वर, रुद्र, विष्णु और ब्रह्मा यह चारों सदाशिवके व्यष्टिरूप हैं। सदाशिव आकाशतत्व के अधिपति हैं।
2. सदाशिव के हजारवें भाग से महेश्वरकी उत्पत्ति होती है। महेश्वर वायु तत्वके अधिपति हैं।
3. महेश्वरके हजारवें भागसे रुद्रमूर्तिकी उत्पत्ति होती है। रुद्र गौरीशक्तिसे युक्त हैं और तेजस्तत्वके स्वामी हैं। जीवोंको जन्म-मरण-दुःखादि से विश्राम देने के लिये और उनके कर्मपरिपाक के लिये यह रुद्र ही सृष्टिका संहार करते हैं।
4. रुद्रके हजारवें भाग से सृष्टिके पालनकर्ता विष्णु की उत्पत्ति होती है। विष्णु रमाशक्ति से युक्त हैं और जलतत्वके अधिपति हैं। इनका प्रतिष्ठा नामक स्थितिचक्र वासुदेव अनिरुद्ध संकर्षण और प्रद्युम्न से युक्त है।
5. विष्णुके हजारवें भाग से ब्रह्मा उत्पन्न होते हैं जो सद्योजात नामक शिवके मुखरूप हैं और पृथ्वीतत्व के अधिपति हैं। यह सरस्वती से युक्त हैं। ब्रह्माके व्यष्टिरूप हैं - हिरण्यगर्भ, विराट्, पुरुष और काल। रुद्र द्वारा संहार करके प्रकृति में लीन किये गये जीवों के कर्मपरिपाक होने पर फलभोगके लिये स्त्री-संतान और दुःख-सुख इत्यादि के निमित्तों का निर्धारण करना ब्रह्मा का कार्य है।
6. यह जगत् चक्र पंचभूतात्मक है तथा शिवके सृष्टि, स्थिति , संहार, अनुग्रह, और तिरोधान नामक पांच कार्यों से युक्त होने के कारण पञ्चारचक्र कहा जाता है। इसीको ब्रह्माण्ड कहा जाता है।