कल्प भेद से कभी विष्णुसे ब्रह्मा और ब्रह्मासे रुद्र की उत्पत्ति होती है, कभी ब्रह्मासे विष्णु और विष्णु से रुद्रकी, कभी रुद्र से आरम्भ होकर यह यह क्रम चलता है।
एक कल्प में ब्रह्माजी ने भगवान् रुद्र से सृष्टिरचना करने की प्रार्थना किया। रुद्र ने अपने ही समान अमर रुद्रों की रचना कर डाला। तब ब्रह्माजी ने कहा ऐसी सृष्टिकी नहीं मरणशील सृष्टि की रचना कीजिये। रुद्रने कहा, मैं ऐसा नहीं कर सकता। तदुपरान्त वह और उनके द्वारा रचे गये रुद्र सृष्टिरचना से उपरत होकर स्थाणु की भांति स्थित हो गये।