*शिवपञ्चाक्षर मन्त्र*
* विना दीक्षा लिये कोई मन्त्र जपने से विपरीत फल और नरक मिलता है। केवल शिवपंचाक्षर एक ऐसा मन्त्र है जिसका जप विना दीक्षा लिये भी कर सकते हैं। किन्तु दीक्षा लेकर जप करें तो कोटि-कोटि गुणा अधिक फलदाई होता है।
* साक्षात् शिव ने अपने पांचों मुखों से क्रमशः पञ्चाक्षर मन्त्र के एक एक अक्षर का उपदेश ब्रह्माजी को किया था।
*उच्चारण विधि* - (1) द्विज पुरुषों वाले क्रम में - इस मन्त्रका प्रथम द्वितीय और चतुर्थ अक्षर उदात्त, तृतीय अक्षर अनुदात्त और पांचवां अक्षर स्वरित है।
2. स्त्रियों और द्विजेतरों वाले क्रम में - प्रथम अक्षर अनुदात्त , द्वितीय उदात्त, तृतीय स्वरित , चतुर्थ और पंचम उदात्त हो जायेगा
* य के स्थान पर यै कर देने से यह शिव के स्थान पर देवी का मूल मन्त्र हो जाता है।