श्रीदुर्गा सप्तशती अध्याय 11, श्लोक 40-55 एवं शिवमहापुराण, उमासंहिता, अध्याय 50।
* "दुर्गा" नाम कब और कैसे पडा़ ? दुर्गा अ़वतार को ही शाकम्भरी और शताक्षी भी कहते हैं।
* कुपुत्रो जायेत् क्वचिदपि कुमाता न भवति। बच्चे भले ही माता को भूल जायें, माता बच्चों को नहीं भूलती। बच्चों के द्वारा स्मरण करने पर वह दौड़ पड़ती है। बच्चों को वह सदैव देखती रहती है। विना देखे उसका एक क्षण युगों की भांति बीतता है।
भगवती शाकम्भरी दुर्गा देवी स्वयं कहती हैं -
वत्सान्दृष्ट्वा यथा गावो व्यग्रा धावन्ति सत्वरम्।
यथैव भवतो दृष्ट्वा धावामि व्याकुला सती।।
मम युष्मानपश्यन्ताः पश्यन्ता बालकानिव।
अपि प्राणान्प्रयच्छन्त्याः क्षण एको युगायते।।