एपिसोड 721. भागवतसुधा 13.
विषयसूची -
1. वाल्मीकीय रामायण से विरोधाभास का निराकरण। श्रीमद्भागवत के अनुसार वारुणी को भगवान् की अनुमति से दैत्यों ने ग्रहण किया।
3. श्लोक संख्या 8/8/8 जिसको विगत अष्टमी (संवत्सर के आठवें मास की अष्टमी तिथि - गोपाष्टमी को सत्संग समूहमें बताये थे।)
3. अमृतपान के लिये विवाद और भगवान् का मोहिनी अवतार ।
4. भगवान् द्वारा छलपूर्वक केवल देवताओं में अमृत वितरण और राहु द्वारा छलपूर्वक देवताओं की कतार में बैठना ... ।
5. समुद्रमंथन कथा का समाजिक निहितार्थ या शिक्षा -
1.उद्यम करने पर आरम्भ में अप्रिय अथवा प्रतिकूल लक्षण प्रकट हों अथवा बाधायें उपस्थित हों तो निराश नहीं होना चाहिये। समुद्रमंथन अमृत के लिये किया गया था। किन्तु सर्वप्रथम विष प्रकट हुआ। अमृत तो सबसे अन्त में निकला। (नोट - विभिन्न पुराणों और वाल्मीकीय रामायण इत्यादि में समुद्रमंथन से उत्पन्न होने वाली वस्तुओं की संख्या और क्रम में अन्तर है। यहां श्रीमद्भागवतकी चर्चा चल रही है, अतः उसी के अनुसार बता रहे हैं।)
2. देवता और दैत्य दोनों ने समान उद्यम किया किन्तु अमृत देवताओं को ही प्राप्त हुआ क्योंकि उनकी भगवान् में भक्ति थी। तात्पर्य यह है कि सफलता केवल उद्यम से नहीं मिलती। उद्यम और भगवत्कृपा दोनों का होना आवश्यक है।
3.भक्तों की भलाई के लिये आवश्यकता पड़ने पर भगवान् छल का भी प्रयोग करते हैं।
6. माहात्म्य - समुद्रमंथन की कथा पढ़ने सुनने का उद्यम कभी भी निष्फल नहीं होता।