एपिसोड 724. भगवद्गीता 4.20.
त्यक्त्वा कर्मफलासङ्गं नित्यतृप्तो निराश्रयः।
कर्मण्यभिप्रवृत्तोऽपि नैव किञ्चित् करोति सः।।
विचारविन्दु -
* कर्मफलासङ्ग के दो अर्थ - 1. निष्काम कर्म । 2. कर्मका फल है यह शरीर - कर्मफलरूप इस शरीर में आसक्ति को त्यागकर।
*नित्यतृप्त का अर्थ।
*निराश्रय का अर्थ।
*श्लोक के उत्तरार्ध का तात्पर्य ।
*ज्ञान हो जाने पर भी मनोनाश और वासनाक्षय के लिये अभ्यास करते रहना चाहिये।