दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

एपिसोड 732. भगवद्गीता 4.25 दैवयज्ञ और ज्ञानयज्ञ


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एपिसोड 732. भगवद्गीता 4.25- देवयज्ञ और ज्ञानयज्ञ।
नारायण।
श्रीमद्भगवद्गीता प्रवचनश्रृंखला में अगला श्लोक है 4.25. श्लोक 25 का पूर्वार्ध योगी के लिये और उत्तरार्ध ज्ञानी (संन्यासी) के लिये है। ध्यातव्य है कि इसमें योगी शब्द का प्रयोग कर्मयोगी के लिये हुआ है। वैसे भी भगवद्गीता में सामान्यतः योगी शब्द का अर्थ कर्मयोगी ही है, जब तक कि संदर्भ से कोई अन्य अर्थ न निकलता हो। श्लोक 4.25 से 4.30 तक छः श्लोकों में भगवान् ने बारह प्रकार के यज्ञों का उल्लेख किया है और उन सबमें ज्ञानयज्ञ को सर्वोत्तम बताते हुये 4.33 से 4.38 तक छः श्लोकों में ज्ञान की महत्ता का वर्णन किया है।
4.25 की व्याख्या सुनने से पूर्व निर्वाणषट्कम् का मननपूर्वक पाठ कर लेना व्याख्या समझने में सहायक होगा।
"मनोबुद्ध्यहङ्कार चित्तानि नाहं
न च श्रोत्रजिह्वे न च घ्राणनेत्रे ।
न च व्योम भूमिर्न तेजो न वायुः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥१॥
न च प्राणसंज्ञो न वै पञ्चवायुः
न वा सप्तधातुः न वा पञ्चकोशः ।
न वाक्पाणिपादं न चोपस्थपायु
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥२॥
न मे द्वेषरागौ न मे लोभमोहौ
मदो नैव मे नैव मात्सर्यभावः ।
न धर्मो न चार्थो न कामो न मोक्षः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥३॥
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखं
न मन्त्रो न तीर्थं न वेदा न यज्ञाः ।
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥४॥
न मृत्युर्न शङ्का न मे जातिभेदः
पिता नैव मे नैव माता न जन्मः ।
न बन्धुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्यं
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥५॥
अहं निर्विकल्पो निराकाररूपो
विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम् ।
न चासङ्गतं नैव मुक्तिर्न मेयः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥६॥"
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati