वेदान्त की कक्षा में स्मृतिचर्चा क्यों ? *शास्त्रवचन है कि वेद और स्मृति - यह दोनों द्विजों की दो आंखें हैं। केवल एक को जानने वाला काणा है और जो एक भी नहीं जानता वह पूर्णतः अन्धा है।
* वेदान्त में सभी वर्णों और सभी आश्रमियों का अधिकार है। किन्तु उसके लिये जो साधनचतुष्ट्य की शर्तें हैं, उनको पूर्ण करना आवश्यक है। उन शर्तों को वही पूरा कर सकता है जो सदाचारी हो। सदाचार का ज्ञान स्मृतियों से मिलता है। अतः जो स्मृतियों की निन्दा करता है, जो वर्णाश्रम को नहीं मानता है, वह साधन चतुष्ट्य से बहुत दूर है और उसका वेदान्त पढ़ना उसके लिये और समाज के लिये भी कल्याणकारी न होकर पतनकारी ही होता है। पुनश्च, वेदान्तज्ञान के लिये चित्त का शुद्ध होना आवश्यक है। संसार में ऐसा कौन होगा जो अपने चित्त को अशुद्ध मानता हो? चित्त शुद्ध है, इस बात की परख प्रथमतया सदाचार से ही हो सकती है। सदाचारके पालन से ही चित्त शुद्ध होता है और चित्तशुद्ध होने पर ही तत्वज्ञान होता है।