कतिपय विद्वानों का मत है कि, मानस में चार रामावतारों अर्थात् चार कल्पके रामावतार की कथायें एक साथ कही जा रही हैं। सभी कल्पों में रामावतार होता है और प्रत्येक कल्पके अवतार की कथामें थोडी़ भिन्नता होती है।नवीनतम अवतार जो गत त्रेतायुगमें हुआ उसको प्रधानरूप से लेते हुये उससे पूर्ववर्ती जिन तीन अवतारों से उसका लगभग पूर्ण साम्य है उनकी कथा भी मानस में समाहित है। अठारहों पुराणों में रामकथा का वर्णन है। प्रत्येकमें कुछ भिन्नता है। उसका कारण यह है कि अलग अलग पुराणों और उनमें वर्णित कथाओं का सम्बन्ध अलग अलग कल्पों से है। विभिन्न पुराणोंमें भिन्न भिन्न कल्पों की कथाएं हैं। कुल रामायणोंकी संख्या सौ करोण अथवा अनन्त है। "नाना भांति राम अवतारा। रामायन सत कोटि अपारा।। कलप भेद हरिचरित सुहाए। भांति अनेक मुनीसन्ह गाए।।" "राम अनन्त अनन्त गुन, अमित कथा विस्तार। सुनि आचरजु न मानिहहिं जिनके बिमल बिचार।।"