प्रोफेसर जी ब्रह्माप्पा की पुस्तक दान चिंतामणि पर आधारित । हजारों वर्ष पूर्व का कर्नाटक । जैन कुल मे एक शूरवीर युवक के साथ एक निष्ठावान श्रावक की दो पुत्रियां अतिमब्बे और गुंडूमब्बे का विवाह हुआ । युद्ध में नायक के वीरगति पाने के कारण सुख शांति से भरा परिवार दुख के सागर में डूब गया। उत्तम संस्कारों के बल पर दिगंबर गुरु का मार्गदर्शन लेकर उस साहसी महिला ने परोपकार और जिनशासन की सेवा करने का व्रत लिया। फिर अपने शेष जीवन का हर क्षण और परिवार की अतुल संपदा का कण-कण उसी साधना में लगा दिया और कहलाई " दान चिंतामणि "