*कर्म सबके लिये अनिवार्य है, इस नियम के अपवाद केवल ज्ञानयोगी अर्थात् आत्मनिष्ठ संन्यासी हैं।
*योगी और ज्ञानी :- भगवद्गीता में कर्मयोगी को ही योगी कहा है।जिनको सामान्यजन प्रायः योगी समझते हैं, उन्हे भगवद्गीता में ज्ञानयोगी/ज्ञानी कहा है।
*यज्ञ का समाजशास्त्र एवं अर्थशास्त्र अर्थात् यज्ञ में रोजगार अथवा संसाधनों का वितरण।