तत्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयोः।
गुणागुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते।।
तत्ववित् कौन है? जो वस्तु जैसी है उसे वैसी ही समझने वाला तत्ववित् है और जो वस्तु जैसी है उसे उससे भिन्न रूप में समझने वाला अतत्ववित् है।
*गुणविभाग और कर्मविभाग क्या है? इन्द्रियां भी गुण हैं और विषय भी गुण हैं। यह दोनों प्रकृति के कार्य हैं। यह जानना अर्थात् पञ्च महाभूत, पञ्चज्ञानेन्द्रियों, पञ्चकर्मेन्द्रियों, मन बुद्धि और अहंकार - इन सबको अलग अलग जानना गुणविभाग है । इन्द्रियों का विषयों के साथ सम्बन्ध को जानना कर्मविभाग है अर्थात् इनकी विभिन्न चेष्टाओं को जानना कर्मविभाग है।
* एक ही प्रकारकी क्रिया में भावके अनुसार प्रभाव उलट जाता है। अज्ञानी समझता है कि मैं कर्त्ता हूं अतः वह कर्मफलके बन्धन में पडा़ रहता है। ज्ञानी समझता है कि मैं कर्त्ता नहीं हूँ, प्रकृतिके गुण और इन्द्रियां अपना अपना कार्य कर रहे हैं अतः वह कर्मफल के बन्धन में नहीं पड़ता।
*कर्त्तापन का भाव अनात्माध्यास के कारण होता है। जिसमें कर्त्तापन रहता है, वही अज्ञानी है।
*अध्यास और अनात्माध्यास क्या है? असत् में सत् बुद्धि होना अर्थात् मिथ्या को सत्य समझना अध्यास है। अनात्म पदार्थों में आत्मबुद्धि होना अनात्माध्यास है।अर्थात् शरीर को मैं (आत्मा) समझना तथा सम्पत्ति और सम्बन्धियों को मेरा समझना अनात्माध्यास है।
*अनात्माध्यास मुख्यतः तीन प्रकार का है- शरीराध्यास, संसर्गाध्यास और सम्बन्धाध्यास।
*गृहस्थविरक्त और गृहत्यागीविरक्त के अनध्यास में क्या अन्तर है ? असंगता के अभ्यास से शरीराध्यास तो घर-परिवार में रहते हुए भी छूट जाता है, किन्तु संसर्गाध्यास और सम्बन्धाध्यास नहीं छूट पाता। इन दोनों अध्यासों से मुक्त होनेके लिये गृहत्याग आवश्यक होता है।