श्राप सीस धरि हरखि हिय, प्रभु बहु बिनती कीन्हि।
निज माया कै प्रबलता करषि कृपानिधि लीन्हि।।
*नारदजीके शाप का साफल्य।
*स्कन्दपुराणवर्णित स्तोत्र जिसके द्वारा भगवान् स्वयं नारदजीकी स्तुति करते हैं - (पत्रकारों और मीडियाकर्मियों के लिये विशेष उपयोगी)।
*विनती किये किन्तु माया को पूर्णरूपेण वापस नहीं लिये, केवल उसकी प्रबलता को खींच लिये।
*विनती भी किये प्रायश्चित्त भी बताये। नारदजी को अपराधबोध हुआ आत्मग्लानि हुयी तो प्रायश्चित्त के लिये कहे कि शङ्करजी के शतनाम (अष्टोत्तरशतनाम) का जप करो -
जपहु जाइ संकर सत नामा।
होइहि हृदय तुरत बिश्रामा।।
*बडो़ं के प्रति अपराध का सर्वश्रेष्ठ प्रायश्चित्त है - शङ्कर जी की सेवा और स्तुति। इस सम्बन्ध में उत्तरकाण्ड में वर्णित रुद्राष्टकम् प्रसिद्ध ही है।
*चित्त की अस्थिरता, भय, भ्रम, घबराहट इत्यादि बडो़ं के शाप के कारण होते हैं। इनके निवारण का सर्वोत्तम उपाय है भगवान् शङ्कर की आराधना।