योग का फल - तदा द्रष्टुः स्वरूपे अवस्थानम्। योग से पहले जीव अपनेको चित्तवृत्तियों के अनुरूप समझता है। योग साधना से विवेक प्राप्त होता और वह अपने को चित्तसे अलग समझ लेता है। अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानकर उसमें विलीन हो जाता है। इससे अतिरिक्त जो भी अवस्थायें हैं वे चित्तवृत्तियों के अनुरूप रहती हैं।