दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

Episode 96. पातञ्जल योगसूत्र 1.3 - योग का फल


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योग का फल - तदा द्रष्टुः स्वरूपे अवस्थानम्। योग से पहले जीव अपनेको चित्तवृत्तियों के अनुरूप समझता है। योग साधना से विवेक प्राप्त होता और वह अपने को चित्तसे अलग समझ लेता है। अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानकर उसमें विलीन हो जाता है। इससे अतिरिक्त जो भी अवस्थायें हैं वे चित्तवृत्तियों के अनुरूप रहती हैं।
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati