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गुरु-वन्दना :
।। ॐ श्री सद्गुरुदेव भगवान् की जय ।।
जय सद्गुरुदेवं, परमानन्दं, अमर शरीरं अविकारी।।
निर्गुण निर्मूलं, धरि स्थूलं, काटन शूलं भवभारी।।
सूरत निज सोहं, कलिमल खोहं, जनमन मोहन छविभारी।।
अमरापुर वासी, सब सुख राशी, सदा एकरस निर्विकारी।।
अनुभव गम्भीरा, मति के धीरा, अलख फकीरा अवतारी।।
योगी अद्वैष्टा, त्रिकाल द्रष्टा, केवल पद आनन्दकारी।।
चित्रकूटिंह आयो, अद्वैत लखायो, अनुसुइया आसन मारी।।
श्रीपरमहंस स्वामी, अन्तर्यामी, हैं बड़नामी संसारी।।
हंसन हितकारी, जग पगुधारी, गर्व प्रहारी उपकारी।।
सत्-पंथ चलायो, भरम मिटायो, रूप लखायो करतारी।।
यह शिष्य है तेरो, करत निहोरो, मोपर हेरो प्रणधारी।।
जय सद्गुरु………भारी।।
।। ॐ ।।
By Bhagavad Gita Sanskrit1
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गुरु-वन्दना :
।। ॐ श्री सद्गुरुदेव भगवान् की जय ।।
जय सद्गुरुदेवं, परमानन्दं, अमर शरीरं अविकारी।।
निर्गुण निर्मूलं, धरि स्थूलं, काटन शूलं भवभारी।।
सूरत निज सोहं, कलिमल खोहं, जनमन मोहन छविभारी।।
अमरापुर वासी, सब सुख राशी, सदा एकरस निर्विकारी।।
अनुभव गम्भीरा, मति के धीरा, अलख फकीरा अवतारी।।
योगी अद्वैष्टा, त्रिकाल द्रष्टा, केवल पद आनन्दकारी।।
चित्रकूटिंह आयो, अद्वैत लखायो, अनुसुइया आसन मारी।।
श्रीपरमहंस स्वामी, अन्तर्यामी, हैं बड़नामी संसारी।।
हंसन हितकारी, जग पगुधारी, गर्व प्रहारी उपकारी।।
सत्-पंथ चलायो, भरम मिटायो, रूप लखायो करतारी।।
यह शिष्य है तेरो, करत निहोरो, मोपर हेरो प्रणधारी।।
जय सद्गुरु………भारी।।
।। ॐ ।।