कविवर भवानी प्रसाद मिश्र की एक छोटी सी दिल के बेहद करीबी कविता है ये जो यह दिखाती है कि सुखों की कमी में पले- बढ़े बच्चों को जब कही अनायास सुख मिलता है तो वे कैसे झिझकते है। उनको लगता ही नही है कि ये सुख उनका भी हो सकता है या फिर अतीत के कड़वे अनुभव उन्हें सुख को खुशी खुशी महसूस ही नही करने देते हैं। ऐसे में एक पिता के दिल के जज्बात व्यक्त किये गए हैं जो अपने बच्चों को सुख देना चाहता है पर वो बच्चे इतना डरते है सुख को देखकर कि वह उन्हें चाहकर भी सुख को महसूस करने को बढ़ावा नही दे पा रहा है।