बुद्ध बनने की प्रक्रिया बड़ी कठिन होती है। व्यक्ति स्वयं तो महात्मा बन जाता है, सिद्धि प्राप्त कर लेता है किंतु उसके घरवाको पर, उसकी पत्नी पर, नवजात बच्चे पर दुखों का कितने पहाड़ टूट पड़ते हैं जिसका विचार वह उस समय नहीं कर पाता है। मैथिलीशरण गुप्त जी की इस कविता में गौतम बुद्ध की पत्नी यशोधई की इसी व्यथा का वर्णन किया गया है