चिंताजनक हालातों से बाहर निकलना आसान है!
अगर आप चिंता में डूबे रहेंगे, तो किसी भी काम में एकाग्रता हासिल नहीं कर पाएंगे। और एकाग्रता भंग होगी तो अंततः आपके जीवन में खुशी का अभाव रहेगा और तनाव व अवसाद बढ़ता जाएगा। सवाल है कि चिंता दूर करने किया जाए? इसे दूर करने की तीन अवस्थाएं हैं। पहला तो हर परिस्थिति का निर्भयता और ईमानदारी से विश्लेषण करना चाहिए और इस निर्णय पर पहुंचना चाहिए कि असफलता के कारण क्या अधिकतम अनिष्ट हो सकता है। दूसरा चरण है कि बुरे से बुरे का आकलन करने के बाद आप उसे आवश्यकतानुसार स्वीकार करने का दृष्टिकोण अपना सकते हैं। इसके फलस्वरूप एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण
परिवर्तन होगा और तुरंत ही कान और एक तरह की शांति का अहसास होगा। और तीसरी अवस्था में आप शांत भाव से उस संभावित अनिष्ट का हल निकालने में जुट जाएंगे।
इन मनोवैज्ञानिक विधियों का विश्लेषण करके आपको चिंता से निकलने का रास्ता मिलेगा। चिंता करने से सबसे ज्यादा निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित होती है। व्यावहारिक मनोविज्ञान के जन्मदाता प्रो. विलियम्स जेम्स का कथन था कि अपनी स्थिति को जैसी है वैसी ही स्वेच्छा से स्वीकार कर लो। स्वीकार करना दुर्भाग्य के किसी परिणाम पर विजय पाने का पहला कदम है। चीनी दार्शनिक लिन युटांग ने कहा था कि स्वीकार करने से मन को एक असीम शांति मिलती है। स्वीकारने के बाद खोने को कुछ नहीं रह जाता। इसके बाद निर्णय लेने की क्षमता भी बेहतर हो जाती है।