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ईशा उपनिषद का पांचवां मंत्र आत्मा की प्रकृति और इसे जानने के मार्ग को उद्घाटित करता है। यह मंत्र इस प्रकार है:
"तदेजति तन्नैजति तद्दूरे तद्वन्तिके |
तदन्तरस्य सर्वस्य तदु सर्वस्यास्य बाह्यतः ||"
इसका संक्षिप्त अर्थ है: वह गतिमान है, फिर भी स्थिर है। वह दूर है, फिर भी निकट है। वह इस संसार के अंदर है, और फिर भी इसके बाहर है।
इस मंत्र के माध्यम से, ईशा उपनिषद आत्मा (या ब्रह्म) के सर्वव्यापक और परोक्ष प्रकृति की ओर इंगित करता है। आत्मा की इस प्रकृति को समझने के लिए, उपनिषद आत्म-अन्वेषण और आत्म-साक्षात्कार पर जोर देता है। यह सुझाव देता है कि आत्मा को जानने के लिए एक व्यक्ति को बाहरी दुनिया के परे गहन अंतर्दृष्टि और समझ की आवश्यकता होती है।
इसे जानने के लिए सुनिए आज का एपिसोड
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All by the grace of Guru ji,
Brahmleen Sant Samvit Somgiri Ji Maharaj.
By Kamlesh Chandraईशा उपनिषद का पांचवां मंत्र आत्मा की प्रकृति और इसे जानने के मार्ग को उद्घाटित करता है। यह मंत्र इस प्रकार है:
"तदेजति तन्नैजति तद्दूरे तद्वन्तिके |
तदन्तरस्य सर्वस्य तदु सर्वस्यास्य बाह्यतः ||"
इसका संक्षिप्त अर्थ है: वह गतिमान है, फिर भी स्थिर है। वह दूर है, फिर भी निकट है। वह इस संसार के अंदर है, और फिर भी इसके बाहर है।
इस मंत्र के माध्यम से, ईशा उपनिषद आत्मा (या ब्रह्म) के सर्वव्यापक और परोक्ष प्रकृति की ओर इंगित करता है। आत्मा की इस प्रकृति को समझने के लिए, उपनिषद आत्म-अन्वेषण और आत्म-साक्षात्कार पर जोर देता है। यह सुझाव देता है कि आत्मा को जानने के लिए एक व्यक्ति को बाहरी दुनिया के परे गहन अंतर्दृष्टि और समझ की आवश्यकता होती है।
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Brahmleen Sant Samvit Somgiri Ji Maharaj.