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यस्त्वाम॑ग्ने ह॒विष्प॑तिर्दू॒तं दे॑व सप॒र्यति॑। तस्य॑ स्म प्रावि॒ता भ॑व॥
- ऋग्वेद (1.12.8)
हे (देव) सब के प्रकाश करनेवाले (अग्ने) विज्ञानस्वरूप जगदीश्वर ! (यः) जो (हविष्पतिः) देने-लेने योग्य वस्तुओं का पालन करनेवाला मनुष्य (दूतम्) ज्ञान देनेवाले आपका (सपर्य्यति) सेवन करता है, (तस्य) उस सेवक मनुष्य के आप (प्राविता) अच्छी प्रकार जाननेवाले (भव) हों॥१॥८॥(यः) जो (हविष्पतिः) देने-लेने योग्य पदार्थों की रक्षा करनेवाला मनुष्य (देव) प्रकाश और दाहगुणवाले (अग्ने) भौतिक अग्नि का (सपर्य्यति) सेवन करता है, (तस्य) उस मनुष्य का वह अग्नि (प्राविता) नाना प्रकार के सुखों से रक्षा करनेवाला (भव) होता है॥२॥८॥
इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। दूत शब्द का अर्थ दो पक्ष में समझना चाहिये अर्थात् एक इस प्रकार से कि सब मनुष्यों में ज्ञान का पहुँचाना ईश्वर पक्ष में, तथा एकदेश से दूसरे देश में पदार्थों का पहुँचाना भौतिक पक्ष में ग्रहण किया गया है। जो आस्तिक अर्थात् परमेश्वर में विश्वास रखनेवाले मनुष्य अपने हृदय में सर्वसाक्षी का ध्यान करते हैं, वे पुरुष ईश्वर से रक्षा को प्राप्त होकर पापों से बचकर धर्मात्मा हुए अत्यन्त सुख को प्राप्त होते हैं, तथा जो युक्ति से विमान आदि रथों में भौतिक अग्नि को संयुक्त करते हैं, वे भी युद्धादिकों में रक्षा को प्राप्त होकर औरों की रक्षा करनेवाले होते हैं॥८॥
(भाष्यकार - स्वामी दयानंद सरस्वती जी)
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हमारी website: www.agnidhwaj.in
(सविनय आभार: www.vedicscriptures.in)
यस्त्वाम॑ग्ने ह॒विष्प॑तिर्दू॒तं दे॑व सप॒र्यति॑। तस्य॑ स्म प्रावि॒ता भ॑व॥
- ऋग्वेद (1.12.8)
हे (देव) सब के प्रकाश करनेवाले (अग्ने) विज्ञानस्वरूप जगदीश्वर ! (यः) जो (हविष्पतिः) देने-लेने योग्य वस्तुओं का पालन करनेवाला मनुष्य (दूतम्) ज्ञान देनेवाले आपका (सपर्य्यति) सेवन करता है, (तस्य) उस सेवक मनुष्य के आप (प्राविता) अच्छी प्रकार जाननेवाले (भव) हों॥१॥८॥(यः) जो (हविष्पतिः) देने-लेने योग्य पदार्थों की रक्षा करनेवाला मनुष्य (देव) प्रकाश और दाहगुणवाले (अग्ने) भौतिक अग्नि का (सपर्य्यति) सेवन करता है, (तस्य) उस मनुष्य का वह अग्नि (प्राविता) नाना प्रकार के सुखों से रक्षा करनेवाला (भव) होता है॥२॥८॥
इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। दूत शब्द का अर्थ दो पक्ष में समझना चाहिये अर्थात् एक इस प्रकार से कि सब मनुष्यों में ज्ञान का पहुँचाना ईश्वर पक्ष में, तथा एकदेश से दूसरे देश में पदार्थों का पहुँचाना भौतिक पक्ष में ग्रहण किया गया है। जो आस्तिक अर्थात् परमेश्वर में विश्वास रखनेवाले मनुष्य अपने हृदय में सर्वसाक्षी का ध्यान करते हैं, वे पुरुष ईश्वर से रक्षा को प्राप्त होकर पापों से बचकर धर्मात्मा हुए अत्यन्त सुख को प्राप्त होते हैं, तथा जो युक्ति से विमान आदि रथों में भौतिक अग्नि को संयुक्त करते हैं, वे भी युद्धादिकों में रक्षा को प्राप्त होकर औरों की रक्षा करनेवाले होते हैं॥८॥
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