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जब चाँद धरा को छूना चाहे,
तरसी आँखें फैली बाँहें,
कोने में कहीं पड़ा चकोर,
भरता जाए ठण्डी आहें!
कैसी चिर प्रतीक्षा है ये,
कठिन है कितनी मिलन की राहें,
काश! कहीं ऐसा हो जाता,
मिलके फिर कोई दूर ना जाए!
क्या सब पूर्व सुनिश्चित है,
या पल-पल भाग्य बनाए,
मीठे स्वप्न सा क्यूँ है जीवन,
खुली आँख तो भंग हो जाए!
सब कुछ पा लेने की आशा,
कितनी हैं अतृप्त इच्छाएँ,
कैसी लगी ये धुनकी मन को,
मन-चकोर बस चाँद को चाहे!
जब चाँद धरा को छूना चाहे,
तरसी आँखें फैली बाँहें,
कोने में कहीं पड़ा चकोर,
भरता जाए ठण्डी आहें!
कैसी चिर प्रतीक्षा है ये,
कठिन है कितनी मिलन की राहें,
काश! कहीं ऐसा हो जाता,
मिलके फिर कोई दूर ना जाए!
क्या सब पूर्व सुनिश्चित है,
या पल-पल भाग्य बनाए,
मीठे स्वप्न सा क्यूँ है जीवन,
खुली आँख तो भंग हो जाए!
सब कुछ पा लेने की आशा,
कितनी हैं अतृप्त इच्छाएँ,
कैसी लगी ये धुनकी मन को,
मन-चकोर बस चाँद को चाहे!