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जो नहीं है अभी
वो होगा कभी
यही सोचकर
वो जी रहा होगा!
सारे जतन
लगते निरर्थक
तब तक…
जब तक…
आदमी चाँद ना छू ले
समंदर ना तैर ले
ऊँचे पर्वत ना चढ़ जाए!
इसके बाद भी
बहुत कुछ बाक़ी है
जो नहीं है
लेकिन होगा
यही सोचकर
वो जी रहा होगा!
क्यूँकि..
अभी कहाँ हुआ है वो
अमर और अजेय!
अभी कहाँ खोजी है
वो दवा!
सदियों से
सदियों का सफ़र
यही सोचकर
कि जो नहीं है
वो होगा
वो जी रहा होगा!
जो नहीं है अभी
वो होगा कभी
यही सोचकर
वो जी रहा होगा!
सारे जतन
लगते निरर्थक
तब तक…
जब तक…
आदमी चाँद ना छू ले
समंदर ना तैर ले
ऊँचे पर्वत ना चढ़ जाए!
इसके बाद भी
बहुत कुछ बाक़ी है
जो नहीं है
लेकिन होगा
यही सोचकर
वो जी रहा होगा!
क्यूँकि..
अभी कहाँ हुआ है वो
अमर और अजेय!
अभी कहाँ खोजी है
वो दवा!
सदियों से
सदियों का सफ़र
यही सोचकर
कि जो नहीं है
वो होगा
वो जी रहा होगा!