कल थी काशी, आज है बनारस

काशी का अस्सी घाट


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बहुत बहुत स्वागत है आप सब का बनारसी सिंह के पॉडकास्ट में. 'सनातन शहर काशी कैसे बना बनारस, से जुड़ी एक हजार कहानियाँ लेकर आ रही मैं आपके बीच. आज की कहानी काशी के उत्तर से दक्षिण सीरे पर बसे अर्ध चंद्राकार घाटों में से सबसे मसहूर और प्राचीन घाट की कहानी. कहानी असि घाट की. जी हाँ. जहाँ आज कल सुबहे बनारस का मंच सजता है वह हमेशा से शक्ति और साहस का केंद्र रहा है. असि वो घाट जो गंगा और असि नदी के संगम पर बसा है. असि नदी भी अति प्राचीन है. मंगलकारी है. क्योंकि यह असि यानि तलवार के गिरने से उत्पन्न हुई. तलवार यानि असि थी देवी दुर्गा की. जब उनका और दो असुर शुंभ और निशुम्भ का युद्ध हो रहा था. उन दोनों का अंत कर देवी दुर्गा ने अपनी तलवार यही फेंकी थी काशी में इस आनंद कानन में उस असि के गिरने से धरती से एक नदी एक जलधारा उत्पन्न हुई वह बनी असि नदी. इस असि नदी के कारण इस घाट का नाम पडा़ असि घाट. अस्सी मोहल्ला भी है इसके पीछे. असि समिति अब यहाँ सब देख रेख करती है. गंगा आरती या कोई भी आयोजन उनके संरक्षण में होता है. इस असि घाट की लोक कथा आपने सुन ली. आगे और क्या क्या है यहाँ जानने के लिए सुनिये आगे की कहानी. अपने पसंद जरूर बतायें. कहानी हर किसी को पसंद आती है. 90 के दशक तक यह कहानियाँ हमें हमारे अतीत से जोडती थीं. दादा, दादी, नाना, नानी, मासी, मामा इन कहानियों के वाचक होते थे. कभी दशहरा में रामायण तो कभी कला मंडली द्वारा प्रस्तुत नाटक इन कहानियों से हमें जोडते थे. हमारे बचपन में गावों में लोकल गीतकार भी आते थे जिन्हें भाट कहते थे वो भी अपनी आवाज में इन मनोहारी कहानियों को कथाओं को गा कर सुनाते थे. कभी स्कूल में गीता पाठ या रामायण का साप्ताहिक पाठ होता तब भी आचार्य और कोई श्रेष्ठ वाचक इन कथाओं को सुनाते थे. इसलिए यह हमारे बीच हमारे साथ जिंदा है. पर अगर सुनना और सुनाना बंद हो गया. फिर आने वाली पीढ़ी को अपने संस्कृति अपने संस्कार और नैतिकता, मानवता का पाठ कोन पढाएगा. इसलिए आधुनिक समय की इस तकनीकी का लाभ उठाकर आपको और आने वाली पीढ़ी तक यह कहानी पहुचाना है. यही उद्देश्य है इस पॉडकास्ट का. इसे सफल बनाने में आप सबकी भागीदारी और साझेदारी जरुरी है. तो बेधड़क साझा करें उनको जिनकोे आप अपने कहानियों से परिचित कराना चाहते हैं. सभी का आभार. हर हर महादेव.
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कल थी काशी, आज है बनारसBy Banarasi/singh