ॐ नमः शिवाय. आपका बहुत बहुत स्वागत है मेरे पाॅडकाॅस्ट पर. आप सुन रहे बनारसी सिंह को. काशी के बनारस बनने की यात्रा की हजार कहानियाँ पाॅडकाॅस्ट में अब तक आपने दो कहानियाँ सुनी है.आज 8 नवंबर रविवार को आप सुन रहे तीसरी कहानी. इस कहानी का आधार भी लोक कथा है. शिव जी से उनकी पत्नी पार्वती जी आग्रह करती है कि मुझे एकांतवास के लिए कोई अन्य शांति पूर्ण स्थान बताऐं. कैलाश पर मन थोड़ा विचलित रहता है. शिव जी ने कहा ठीक है देवी आपके लिए नये स्थान की खोज करता हूँ. शिव जी श्रृषि द्रोणागिरि के पास गये. उनके बड़े पुत्र द्रोणार्थ को मांगा. उनसे लाकर गंगा के उतरी तट पर रखा. गंगा की धारा से पर्वत हरा भरा हो गया. मानव बस्ती बस गयी. तब शिव जी देवी को वहां ले गये, पार्वती जी को हरा भरा और जीवन से भरपूर स्थान पसंद आया. देवी ने वही तप किया. उनके तप के प्रभाव से वह स्थान पवित्र और दिव्य हो गयी. शिव जी ने देवी की रक्षा में काल भैरव को यहाँ भेजा. फिर कुछ समय बाद स्वयं आये तो देवी ने कैलाश के बजाय इसी स्थान पर रहने की इच्छा जताई. प्रभु से आग्रह किया आप भी यही विराजो. पत्नी की इच्छा को मान शिव जी ने निराकार रुप से विश्वेश्वर रुप में ज्योतिर्लिंग में स्थित हुए. इस तरह काशी के नाथ विश्वनाथ की कृपा से काशी की स्थापना हुई. आगे की कहानी काशी के पंचक्रोशी यात्रा की.