आनंद क्या है. हंसना, मुस्कुराना या पार्क में जोर जोर से हंसने का प्रयास तो बिल्कुल नहीं. फिर क्या है यह आनंद कहाँ मिलेगा. यह मिले गा आप के अंदर. जब भी आप स्वयं से संतुष्ट होंगे, स्वयं को जानने की यात्रा पर निकलेंगे. आनंद एक सि्थती एक दशा है. जिसे पाने के लिए भ्रम और अंहकार का त्याग करना पड़ता है. अपने अंदर स्थित आत्मा से साक्षात्कार करना पड़ता है. विकारों को त्याग कर गुरु को खोजना पड़ता है. योग और ध्यान को साधना पड़ता है. बंद पडे़ दिमाग को पूराने अनुभव को निकाल कर नये अनुभव से सजाना होता है. आंख को या यूँ कहें पंच इंद्रियों को साध कर उन पर नियंत्रण कर सरल और सत्य को जानने का प्रयास आरंभ करने मात्र से यह आनंद अनुभव होने लगता है. बहुत कठिन लग रहा है ना... फिर बस छुट्टी लो और काशी चले जाओ. गंगा के किनारे बैठो सबह शाम मौन होकर सब कुछ देखो... बस देखो, सुनो और जीवो.. अपने अंदर की आवाज को सुनो... आनंद वही से मिले गा. कहानी आनंद वन की यह है कि भगवान शिव को जब घूमने की इच्छा हुई तो पत्नी संग काशी आए. यहाँ वो आदि योगी नहीं केवल पति, पिता और महाश्मशान में भ्रमण करने वाले अघोरी हैं. यहाँ काशी में वो सृजन कर्ता हैं. प्रेम का प्रतीक हैं. श्रद्धा का केंद्र है. उमा देवी एक पत्नी भी है माँ भी है और अन्नपूर्णा भी हैं. दोनों के प्रेम का प्रतीक है काशी. काशी में उनके एकात्म के क्षण भी है और दाम्पत्य की सहभागिता और समर्पण है. गंगा और सूर्य की पहली किरण से मिल कर होने वाला अलौकिक सवेरा भी है. वेदों का पाठ हैं... मंदिर की घंटे की आवाज भक्त गणों की जय उद्घोष भी है. बस यहाँ पापहिन्ता का एहसास है. मुक्त होने का भाव है. खुद को कुछ नहीं से संपूर्णता में विलीन करने का एक प्रयास है. इसी एक पल में व्याप्त आनंद को जीवन कहते हैं. जो बह रहा है काशी में यहाँ के हर वाशी में... आइए और छोड़ दिजिए स्वयं को महादेव के शरण में फिर देखिए कैसे भोले भंडारी आपके सब दोष हर कर आपको हर हर महादेव कर देते हैं.... सृष्टि के कर्ता के सानिध्य में पाने की चाह ले कर नहीं देने की इच्छा लेकर आना... जीवन का रस प्राप्त हो जाएगा... तब कहना कि आनंद कानन में आनंद के कंद मूल प्राप्त हुए या नहीं... सब कुछ देकर जो प्राप्त होता है वही तो आनंद है. आगे की कड़ी में सुनिए मणिकर्णिका क्षेत्र की महता. जय हो सबकी... नारायण नारायण...