कल थी काशी, आज है बनारस

काशी थी नारायण पुरी, फिर बनी कैसे बाबा धाम


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राधे राधे मित्रों, आज कहानी में ट्वीस्ट है. काशी आरंभ में विष्णु जी की नगरी थी. यहाँ वैष्णव मत का बोलबाला था. फिर आज यह बम बोल के शंखनाद से क्यों गुंजायमान है. सोच रहे. तो कहानी सुनो ना. एंकर या स्पोटिफाइ एप डाउनलोड करो. सनातन शहर काशी के बनारस बनने की यात्रा' से जुड़ी हजार कहानी सुनने के लिए बनारसी सिंह को सर्च करो. या फिर जो लिंक मैं शेयर कर रही उस पर जा कर सुनिए. यह बहुत आसान है. थोड़ा समय दीजिये कुछ ऐसा करने के लिए जो देखना नहीं सुनना है. जैसे पहले रेडियो सुनते थे. यहाँ आप अपना काम भी कर सकते हो और मुझे सुन भी सकते हो अलग से समय निकालने की जरूरत नहीं. बनारस में काशी को ढूंढना है. तो मेरी मदद लिजीए. मैं आपको वो बता रही जो है सदा से बस आप ने सुना नहीं और देखा नहीं. यह यात्रा है आइए मेरे साथ बनारस में काशी को खोजते और समझते हैं. क्यों कि यह हमारे अस्तित्व के आरंभ से है. बहुत पुरानी और आज भी है. आगे भविष्य में भी होगी. इस शांति और आनंद यात्रा की जरूरत सबको है. आज नहीं तो कभी नहीं. अपनी अंतरमन को भी सुनना चाहिए. बाहर तो हम सब भटक ही रहे. एक डुबकी मन और आत्मा के सागर में भी लगाआओ ना. दिए के बूझने से पहले एक बार काशी जाआे ना.हर हर महादेव का जयकारा लगाओ ना. अपने अंदर एक प्यास खुद के तलाश की जगाओ ना. एकबार तो काशी आओ ना. काशी वाराणसी, बनारस, अविमुक्त, मोझदायीनी गंगा घाटो पर कुछ पल बिताओ ना. एक यही रुक जाओ ना. वाह आज तो कवि रुप भी दिख गया मेरा. खैर कहानी सुनना और सुनाना हमारी परंपरा है. मैं बस उसी को जी रही. आप भी इन कहानियों को सुनो और जीओ.
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कल थी काशी, आज है बनारसBy Banarasi/singh