कल थी काशी, आज है बनारस

काशी विश्वनाथ मंदिर में राम नाम की गूँज, कठिन परीक्षा, विजयी हुए गोस्वामी तुलसीदास, कैसे जानिए?


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श्री राम मित्रों, आज की कथा है काशी में जब तुलसी दास आते हैं वापस रामचरितमानस की रचना करने के बाद. श्री राम के आदेश पर महादेव से आशीर्वाद लेने तब वो एक साधारण भक्त रुप में विश्वनाथ मंदिर में अपने महाकाव्य का पाठ करते हैं. मां पार्वती और बाबा शिव को रामचरितमानस सुनाते हैं. इस रात्रि प्रभु के पास पुस्तक रख दी जाती है सुबह मंगला आरती पर पट खुलते हैं तो लोग निशब्द और आश्चर्य में बस दर्शनार्थियों से खड़े रह जाते हैं. यह क्या पुस्तक पर सत्यं शिवमं सुंदरम् लिखा है. महादेव द्वारा पुस्तक को सत्यापित किया गया. अब तो हर ओर तुलसी दास के ही नाम की गूँज थी. पर कलियुग में या किसी भी युग में भक्ति और ज्ञान को अग्नि परीक्षा देनी ही होती है. फिर क्या हुआ सुनिए बनारसी सिंह के पॉडकास्ट में. सनातन शहर काशी के बनारस बनने की हजार कहानी की यात्रा में आप भी साथ हो लें हो सकता है वो मिल जाये जिसे सब ढूंढ रहे पर जानते नहीं. वही जिसे खरीदा नहीं जा सकता. जो मिल जाये तो एक पल में ही संपूर्णता का आभास हो जाये. मुझे क्या पता आप क्या खोज रहे. मैं तो बस आनंद और शांति की बात कर रही. अच्छा आप भी वही सोच रहे. नहीं दुविधा है. कोई नहीं यह भी होना चाहिए जिज्ञासा और दुविधा ही है पहली सीढ़ी. जहाँ से यह तलाश शुरू होती है. खैर कहानी के अंत में क्या होता है. कैसे तुलसी को महादेव अपने निर्णय से स्तब्ध करते हैं. कैसे तुलसी को पीड़ा में हनुमान याद आते हैं कैसे वो हनुमान से दर्द निवारण के लिए हनुमान बाहूक लिखते है. सब कुछ जानने के लिए सुनिये बनारसी सिंह द्वारा प्रस्तुत अगली कहानी. तब तब खुश रहिये. स्वस्थ रहिये. बम बम भोले.
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कल थी काशी, आज है बनारसBy Banarasi/singh