क्यों जगा जाती हो तुम नींदों से,
सोया था भुला कर तुमको अच्छे से,
मींच कर आँखों को कस कर,
की कहीं तुम सपनों से,
भीतर न आ जाओ,
गर आ भी जाओ तो
मुझको न दिख पाओ,
यादों को तुम्हारी मैं,
समेट कर,
जैसे तैसे,
अच्छे से बाँध कर,
दुछत्ती पर जो रख आया हूँ,
किवाड़ भी बंद कर आया हूँ,
बोलो फिर,
क्यों परेशान करते हो मुझको,
कानों को भींच कर,
यूँ बन्द किआ,
जिससे तुमको न सुन पाउ,
न पायल,
न चूड़ी,
न कोई खन-खन,
न तुमहारी कोई आहट,
कुछ भी नही,
कुछ भी नही सुन पाऊँ,
जिनसे तुम्हारे अहसास मेरे पास आ सके,
तुमहारी बातों को,
अलमारी में कुछ यूं ही भर दिया है,
बेतरकीब,
जल्दी-जल्दी,
की कहीं तुम न आके,
फिर से,
न बिखरा जाओ,
मेरे मन मे,
सबकुछ,उथल-पुथल कर जाओ,
दुबारा!