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आज जब यूरोप में चरम दक्षिणपंथ के उभार की संभावनाएँ दिख रही हैं, एक बार फिर हिटलर को याद किया जाने लगा है। अखबारों में लेख आ रहे हैं, किताबें लिखी जा रही है, पत्रिकाओं में सचित्र विवरण आने लगे हैं। संभवतः अडोल्फ़ हिटलर को भुलाना यूरोप या दुनिया के लिए कभी मुमकिन न हो। कारण सिर्फ़ यह नहीं कि हिटलर एक निरंकुश तानाशाह था, बल्कि यह कि वह जनता द्वारा चुना गया और पसंद किया गया नेता था। उसने तख़्ता-पलट नहीं किया, बल्कि लोकतंत्र के माध्यम से गद्दी तक पहुँचा। वह लोकतंत्र की एक ऐसी संभावना है जो लोकतंत्र का ही गला घोंट सकती है। ऐसी संभावना से यूरोप या दुनिया का घबराना लाज़मी है।
आज जब यूरोप में चरम दक्षिणपंथ के उभार की संभावनाएँ दिख रही हैं, एक बार फिर हिटलर को याद किया जाने लगा है। अखबारों में लेख आ रहे हैं, किताबें लिखी जा रही है, पत्रिकाओं में सचित्र विवरण आने लगे हैं। संभवतः अडोल्फ़ हिटलर को भुलाना यूरोप या दुनिया के लिए कभी मुमकिन न हो। कारण सिर्फ़ यह नहीं कि हिटलर एक निरंकुश तानाशाह था, बल्कि यह कि वह जनता द्वारा चुना गया और पसंद किया गया नेता था। उसने तख़्ता-पलट नहीं किया, बल्कि लोकतंत्र के माध्यम से गद्दी तक पहुँचा। वह लोकतंत्र की एक ऐसी संभावना है जो लोकतंत्र का ही गला घोंट सकती है। ऐसी संभावना से यूरोप या दुनिया का घबराना लाज़मी है।