आप सभी मित्रों और स्वजनों को नागपंचमी पर्व की हार्दिक बधाई. आज काशी की कहानी में पाताल निवासी शिव और उनके भक्तों यानि नाग देवताओं के अस्तित्व और सनातन धर्म में उनके स्थान और छोटे गुरु और बड़े गुरु परंपरा के बारे में थोड़ी जानकारी मिलेगी इस कड़ी में. देखिए बचपन में हम त्योहार बस घूमने फिरने और खाने पीने का एक मौका मानते थे. है ना. पर कभी हमें यह नहीं बताया गया कि कोई पर्व और उत्सव का हमारे जीवन में क्या महत्व है. पर सभी हिन्दू पर्व एक गहरी सोच और जीवन ज्ञान को लेकर निर्मित किए गये हैं. यह मानव समाज में समानता, पोषण और सह- अस्तित्व की भावना को अंजाने में ही आदत बनाने का एक बेहतरीन कला है. अब नाग पंचमी में नाग देवता की पूजा करो. शिव के शरणागत हैं यह नाग देवता. मनुष्य ने इनसे धरती झीन लिया इसलिए सभी पाताल में रहते हैं. यह भोले भाले जीव है. पर मनुष्य कभी सपेरा बन के, कभी बाजार में मुनाफा कमाने के लिए, कभी सौंदर्य प्रसाधन के लिए, कभी दवा बनाने के लिए, इनका इतना शिकार करता है कि यह अपने अंत पर आ गये. पांडव जब हस्तीनापुर से निकाले गये तो खांडवप्रस्थ आये. यहाँ तकक्षक रहते थे अपने सर्पों के साथ. यही इंद्रप्रस्थ बना. और अब दिल्ली है. नागों को पाताल भेज दिया गया. इसी वंश में राजा परीक्षीत को तक्षक ने शाप वश डंसा. यह तक्षक का संकल्प भी था कि मैं पांडव कुल के नाश का कारण बनूं. फिर जनमेजय ने अपने पिता के मृत्यु का बदला लेने के लिए नाग यज्ञ किया ताकि पूरी धरती नाग हीन हो जाये. तो नाग और मानव की शत्रुता नयी है पर मित्रता और सह अस्तित्व का संबंध बहुत पुराना. काशी में नागवंशी राजाओं का शासन था. ऐसा स्कंध पुराण में लिखा गया है. नागवंशी राजा महाराजा हुए हैं पूरे भारत वर्ष में. नागवंश से हमारे महादेव और श्री हरि को अति प्रेम है. शेषनाग धरती को थामें हैं तो वासुकी ने समुद्र मंथन में रस्सी बनकर देवो को अमृत और धनधान्य प्रदान किया. कोई ब्रह्म लोक में रहता है तो कोई बैकुंठ में. कोई कैलाश पर. सृष्टि के सृजन में और निमार्ण में इनका भी महत्व रहा है. इस योगदान के लिए अगर नागों को पूजा जाये और उनको संरक्षित किया जाये. क्योंकि वो जीवन परंपरा की प्राचीन धरोहर हैं तो नागपंचमी अवश्य मनानी चाहिए. इससे कालसर्प दोष और पितृ दोष से मुक्ति मिलती हैं. सेवा और संरक्षण ही तो सनातन धर्म की परंपरा है. है ना. तो प्रेम से मनायी ये यह पर्व. हर हर महादेव.