इस बार की कहानी या लोककथा को प्रत्यक्ष रुप से आप महसूस भी कर सकते हैं. पर इसको अनुभव करने के लिए अब आपको अगले वर्ष कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष के त्रयोदशी यानि तेरस तक इंतजार करना होगा. क्योंकि हर वर्ष धनतेरस को ही देवी अन्नपूर्णा के मंदिर के द्वार आम भक्तों के लिए पांच दिन के लिए खुलते हैं. तभी से काशी में दिपोत्सव भी शुरू हो जाता है जो अन्न कूट तक चलता है. इस दौरान भक्तों को अन्ना धन का प्रसाद भी मिलता है. जिसे पाकर भक्त का जीवन और परिवार समृद्ध हो जाता है. लाखों की संख्या में लोग देश दुनिया से काशी आते हैं और माता अन्नपूर्णा के स्वर्णिम प्रतिमा के दर्शन करते हैं. इस सनातन परंपरा से जुड़ी एक कहानी है. स्कंध पुराण में वर्णित हैं कि जब देवी पार्वती ने काशी में शिव जी के साथ गृहस्थी शुरू किया. तब काशी महाश्मशान के रुप में जानी जाती थी. आम गृहणी की तरह देवी को भी अपने घर 🏡 यानि काशी के श्मशान कहे जाने पर उचित नहीं लगता था फिर उन्होंने शिव जी से भी इस बारे में बात की. तब दोनों लोगों ने तय किया सतयुग, त्रेता युग और द्वापरयुग में काशी को भले ही महाश्मशान नगरी कहा जाए पर कलियुग में काशी समृद्ध और संपन्न नगरी के रुप में जानी जाएगी. इसलिए अब की काशी जहाँ एक ओर शिव का प्रिय श्मशान है वहीं यह देवी के प्रधान शाक्ति पीठ में से एक है. काशी के केदारखंड में स्थित अन्नपूर्णा देवी यही काशी से सभी के लिए अन्ना और धन का प्रबंध करती हैं. कहते हैं काशी में मां का आशीर्वाद है यहाँ कोई भी भूखा पेट नहीं होता. एक अन्य पुराण कहता है कि शिव जी काशी में एक गृहस्थ के रुप में रहते थे, देवी पार्वती जो शिव की अर्धांगिनी हैं वह एक गृहणी सी सारे काशी की व्यवस्था देखती हैं, काशीवासी बाबा और माता की संतान है जिनकी सुरक्षा और पोषण इन दोनों दंपति का दायित्व है जिसे महादेव और देवी गौरी सदियों से निभा रहे. देवी का अन्नपूर्णा स्वरूप मातृत्व से भरा और जीवन उर्जा से भरा है. काशी एक मस्तमौला शहर है. यहाँ लोग उठते हैं हरहर महादेव हर हर गंगे बोलते हुए और सोते हैं मां अन्नपूर्णा को धन्यवाद करते हुए. बेफिक्ररी काशी की हवा में है. क्योंकि जहाँ के इष्ट महादेव हो और माँ देवी पार्वती वहाँ के लोग को चिंता कैसी. आप भी सब कुछ महादेव और माता के सामने समर्पित कर दें. उनमें विश्वास रखें आपका कल्याण होगा. प्रेम से बोलिये उमा पार्वती पतये नमः हर हर महादेव..... शुभ रात्रि..