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वे कर्मयोगी जो न तो कोई कामना करते हैं और न ही किसी से घृणा करते हैं उन्हें नित्य संन्यासी माना जाना चाहिए। हे महाबाहु अर्जुन! सभी प्रकार के द्वन्द्वों से मुक्त होने के कारण वे माया के बंधनों से सरलता से मुक्ति पा लेते हैं।
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By Dainik Jagranवे कर्मयोगी जो न तो कोई कामना करते हैं और न ही किसी से घृणा करते हैं उन्हें नित्य संन्यासी माना जाना चाहिए। हे महाबाहु अर्जुन! सभी प्रकार के द्वन्द्वों से मुक्त होने के कारण वे माया के बंधनों से सरलता से मुक्ति पा लेते हैं।
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