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कोई कविता क्यों सुने?“कविता का काम दुनिया को बदलना नहीं, बल्कि इंसान को बदलना है।”- पाब्लो नेरुदाकविता सुनने की कोई वजह नहीं होती — और यही वजह है कि कविता ज़रूरी है।हम भागती-दौड़ती ज़िंदगी में हर रोज़ शब्दों का इस्तेमाल तो करते हैं, लेकिन उन्हें महसूस करना भूल जाते हैं। कविता वही भूली-बिसरी संवेदना है, जो हमें फिर से इंसान बना देती है।कविता सुनना दरअसल अपने भीतर झांकना है। जब कोई कहता है —“मैं अकेला नहीं हूँ, मेरी बात किसी ने कही है।”तो वही कविता है।कविता शब्दों का पुल है — हमारे दिल और दूसरे दिलों के बीच।“कविता शब्दों में लय नहीं, भावों में लय है।”- हरिवंश राय बच्चनजब आप कविता सुनते हैं तो आपको अपने अंदर कहीं कोई पुरानी चिट्ठी खुलती महसूस होती है। कभी यह बचपन के आँगन की खुशबू है, कभी कोई भूला हुआ चेहरा, कभी कोई सवाल जो पूछना था लेकिन कभी पूछा नहीं।कविता हमें धीमा बनाती है।धीमे होने में ही गहराई है।धीमे होने में ही सुकून है।इसीलिए कविता सुनना बेकार नहीं —ये अपनी आत्मा से मिलना है।सोचिए — जिस दौर में हर दूसरा व्यक्ति बस ‘कंटेंट’ बनाना या देखना चाहता है, वही अगर कविता सुन ले, तो क्या होगा? शायद वह थोड़ी देर के लिए सोशल मीडिया से ऊपर उठ कर खुद से जुड़ेगा। शायद उसे याद आएगा कि ज़िंदगी सिर्फ ‘रील’ नहीं होती, रीयल भी होती है।“जहाँ शब्द खत्म होते हैं, वहाँ से कविता शुरू होती है।”- रवीन्द्रनाथ टैगोरकविता किसी को बदल नहीं सकती — लेकिन एक बीज ज़रूर बो सकती है।वह बीज है — समझदारी का, संवेदना का, करुणा का।इस बीज से रिश्तों में मिठास, सोच में गहराई और दिल में थोड़ी सी नमी बनी रहती है।तो अगली बार जब कोई कहे — “कोई कविता क्यों सुने?”तो मुस्कुराकर कहना —“कविता कोई सुनता नहीं — कविता तो खुद सुनाई देती है, जब दिल तैयार होता है।”⸻“कविता कैफ़े” भी बस यही कोशिश है —कि आप शब्दों के भाव भरे घूँट पी सकें।थोड़ा ठहरें, थोड़ी साँस लें…और याद रखें — आप अब भी इंसान हैं।
कोई कविता क्यों सुने?“कविता का काम दुनिया को बदलना नहीं, बल्कि इंसान को बदलना है।”- पाब्लो नेरुदाकविता सुनने की कोई वजह नहीं होती — और यही वजह है कि कविता ज़रूरी है।हम भागती-दौड़ती ज़िंदगी में हर रोज़ शब्दों का इस्तेमाल तो करते हैं, लेकिन उन्हें महसूस करना भूल जाते हैं। कविता वही भूली-बिसरी संवेदना है, जो हमें फिर से इंसान बना देती है।कविता सुनना दरअसल अपने भीतर झांकना है। जब कोई कहता है —“मैं अकेला नहीं हूँ, मेरी बात किसी ने कही है।”तो वही कविता है।कविता शब्दों का पुल है — हमारे दिल और दूसरे दिलों के बीच।“कविता शब्दों में लय नहीं, भावों में लय है।”- हरिवंश राय बच्चनजब आप कविता सुनते हैं तो आपको अपने अंदर कहीं कोई पुरानी चिट्ठी खुलती महसूस होती है। कभी यह बचपन के आँगन की खुशबू है, कभी कोई भूला हुआ चेहरा, कभी कोई सवाल जो पूछना था लेकिन कभी पूछा नहीं।कविता हमें धीमा बनाती है।धीमे होने में ही गहराई है।धीमे होने में ही सुकून है।इसीलिए कविता सुनना बेकार नहीं —ये अपनी आत्मा से मिलना है।सोचिए — जिस दौर में हर दूसरा व्यक्ति बस ‘कंटेंट’ बनाना या देखना चाहता है, वही अगर कविता सुन ले, तो क्या होगा? शायद वह थोड़ी देर के लिए सोशल मीडिया से ऊपर उठ कर खुद से जुड़ेगा। शायद उसे याद आएगा कि ज़िंदगी सिर्फ ‘रील’ नहीं होती, रीयल भी होती है।“जहाँ शब्द खत्म होते हैं, वहाँ से कविता शुरू होती है।”- रवीन्द्रनाथ टैगोरकविता किसी को बदल नहीं सकती — लेकिन एक बीज ज़रूर बो सकती है।वह बीज है — समझदारी का, संवेदना का, करुणा का।इस बीज से रिश्तों में मिठास, सोच में गहराई और दिल में थोड़ी सी नमी बनी रहती है।तो अगली बार जब कोई कहे — “कोई कविता क्यों सुने?”तो मुस्कुराकर कहना —“कविता कोई सुनता नहीं — कविता तो खुद सुनाई देती है, जब दिल तैयार होता है।”⸻“कविता कैफ़े” भी बस यही कोशिश है —कि आप शब्दों के भाव भरे घूँट पी सकें।थोड़ा ठहरें, थोड़ी साँस लें…और याद रखें — आप अब भी इंसान हैं।